Madhu varma

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लेखनी कविता - मुर्गा - बालस्वरूप राही

मुर्गा / बालस्वरूप राही


एक रोज मुर्गा जी जा कर
कहीं-कहीं आप कुछ भाँग
सोचा-चाहे कुछ हो जाए,
आज नहीं देंगे हम बाँग।

आज न बोलेंगे कुकड़ू-कून,
देखें होगी कैसे भोर,
किन्तु नशा उतरा तो देखा-
धूप खिली थी चारों ओर।

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